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यस आई एम—14 [फोरेंसिक लैब]

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अभय पुलीस स्टेशन में बैठा हुआ कुछ सोच रहा था। फोन की रिंग से उसकी तंद्रा टूटी। वह फोन उठाते हुए बोला। "हैलो!"

"हाय अभय! मै शैलजा! रिपोर्ट आ गई है।" फोन की दूसरी ओर से जवाब आया।

"क्या पता चला रिपोर्ट से?" अभय ने पूछा।

"उस लड़के की मौत सिर की नशे फटने की वजह से हुई थी।" कहकर वह चुप हो गई।

"मतलब ये भी एक्सीडेंट ही था?" अभय ने पुलीस स्टेशन की छत को घुरते हुए पूछा।

"हां!" शैलजा ने सपाट भाव से जवाब दिया और कॉल कट कर दी। अभय दोबारा फिर अपनी सोच में खो गया।

शैलजा सक्सेना कार ड्राइव करके कही जा रही थी। उसने अभय से बात करने के बाद फोन बगल वाली सीट पर रख दिया। कार ड्राइव करते हुए खुद में ही खोई हुई थी। तभी उसे बदहवासी की हालत में एक लड़की अपनी गाड़ी की ओर आती हुई दिखाई दी।

 लड़की को बचाने के लिए शैलजा ने हाई ब्रेक लगा दिए। सीट बेल्ट लगे होने के कारण उसका सिर स्ट्रेरिंग पर लगने से बाल बाल बच गया। गाड़ी लड़की से टकराई भी नही थी, बाबजूद इसके वह बेहोश हो नीचे गिर गई। 

शैलजा अपनी कार से उतर कर सीधा लड़की के पास पहुंच गई और उसकी नब्ज टटोलने लगी। पहले तो शैलजा को लड़की की नब्ज नही मिली। पर जब उसे नब्ज मिली तो वे बंद हो चुकी थी। एतिहात के तौर पर शैलजा लड़की के गले पर नब्ज़ टटोलने लगी पर वे भी बंद हो चुकी थी। शैलजा के चेहरे के भाव दुःख में बदल चुके थे। वह लड़की मर चुकी थी। 

 सड़क पर इधर उधर देखते हुए वह खुद से बोली। "ऐसा कैसे हो सकता है? ये लड़की तो कार से टकराई भी नही थी, फिर कैसे मर गई?" कहकर शैलजा दोबारा फिर से लड़की की नब्ज टटोलने लगी। उसके हाथ सिर्फ और सिर्फ निराशा लगी। 

ना जाने शैलजा को क्या हुआ उसने लड़की की लाश को अपनी गाड़ी में लेटाया और वहां गाड़ी को लैब की ओर मोड़ दिया।

एक पच्चीस छब्बीस साल की लड़की जिसकी आंखो पर चश्मा लगा हुआ था। शारीरिक बनावट में काफी तंदरुस्त दिखाई दे रही थी। लैब में बैठी हुई अपना काम कर रही थी। तभी अचानक से उसे लैब के बाहर किसी के पैरों की आवाज सुनाई दी। जिसे सुनकर वह घबरा गई। वह खुद में बड़बड़ाते हुए बोली। "इस वक्त लैब में कौन हो सकता है?" वह आगे कुछ सोच पाती उससे पहले ही उसे कांच के क्लास पर एक परछाई दिखाई दी। जिसे देखकर वह घबरा गई।

वह अपना काम छोड़कर दबे हुए पैरों से गेट की तरफ बढ़ने लगी। तभी अचानक गेट अपने आप खुल गया। मास्क पहने हुए एक शख्स अचानक से उसके सामने आ गया। वह  बड़ी ही सर्द आवाज में फुसफुसाते हुए बोला। "कितना वक्त बीत चुका है। पर तुमने अभी तक अपना काम पूरा नहीं किया। अगर इस बार देरी कि तो अंजाम अच्छा नहीं होगा।"

"वो...वो। मै पूरी कोशिश कर रही हूं। पर शैलजा को चकमा देना इतना आसान काम नही है।" घबराहट के मारे लड़की ने हकलाते हुए जवाब दिया।

"वो तुम्हारी टैंशन है मेरी नही। तुम जानना नही चाहती कि आखिरकार तुम्हारी मां के साथ क्या हुआ था?" शख्स ने अपनी सर्द आवाज में कहा। उसकी आँखें गुस्से की वजह से लाल हो चुकी थी।

वह आगे कुछ कह पाता, लैब के बरामदे में किसी के पैरों की आवाज सुनाई दी। पैरों की आवाज सुनकर घबराहट के मारे लड़की के माथे पर पसीना आ गया। जिसे देखकर उस शख्स ने लड़की के पास आते हुए पूछा। "क्या हुआ तुम इतना क्यों घबरा रही हो?"

"तुम यहां से जाओ। अभी के अभी। शैलजा यहां पर आ चुकी है।" लड़की ने बताया।

"अपना काम याद रखना तुम। इस बार अगर कोई गलती हुई तो परिणाम अच्छा नही होगा।" शख्स ने बड़े ही खूँखार ढंग से अपनी बात कही और लैब के पिछले गेट से वहां से चला गया। वह लड़की खुद को संयमित करते हुए दोबारा फिर से अपने काम में लग गई।

"क्या हुआ दी? लड़की ने दरवाजा खुलने की आवाज सुनते ही पूछा।

"पहले यहां आकर मेरी मदद करो।" शैलजा ने दबी हुई आवाज से कहा। जिसे सुनकर लड़की के माथे पर परेशानी की लकीरें उभर आई। जिसे वह छिपाने की कोशिश कर रही थी। वह भागते हुए गेट के पास गई। शैलजा के साथ एक लड़की की लाश को देखकर और भी ज्यादा परेशान हो गई। 

"आप तो घर के लिए निकली थी ना यहां से। फिर ये लाश कहां से उठा लाई?" लड़की ने शैलजा से नजरे चुराते हुए पूछा। उसकी आवाज में हैरानी और परेशानी दोनों के मिले जुले भाव शामिल थे। 

"मै जा ही रही थी कि ये लड़की मेरी गाड़ी के सामने आ गई।" शैलजा कुछ देर के लिए रूकी और फिर आगे बोली। "अब यही सारी पूछताछ कारोंगी या फिर इसे अंदर ले जाने में मेरी मदद भी करोगी।" शैलजा ने लाश को संभालते हुए कहा।

"सॉरी!" कहकर लड़की ने लाश को सहारा दिया। दोनों ने लाश को ले जा कर स्ट्रेचर पर लेटा दिया।

"वैसे तुम्हारी जरा जरा सी बात पर सॉरी और थैंक्स बोलने की आदत जाएगी नही, है ना?" शैलजा ने हँसते हुए पूछा।

"नही! आदत से मजबूर हूं।" लड़की ने सपाट भाव से जवाब दिया। 

"कोई बात नही।" कहकर शैलजा लैब में बने हुए एक कनरे में चली गई। जब वह वापिस लौटी तो वह लैब का कोट पहने हुए थी। शैलजा ने आते ही लड़की से पूछा। "वैसे तुम अभी तक यहां क्या कर रही हो?"

"वो.. वो! कुछ काम रह गया था। उसे ही समेट रही थी।" लड़की ने अपनी हकलाहट पर काबू करते हुए जवाब दिया।

"डर क्यों रही हो आल्हादिनी ?" शैलजा ने आल्हादिनी के चेहरे को गौर से देखते हुए पूछा।

"नही तो! ऐसा कुछ भी नही है दी।" कहते ही आल्हादिनी इधर उधर देखने लगी और फिर आगे बोली। "आप ही तो काम दे कर गई थी। फाइल्स का, बस वो ही कर रही थी।" कहकर आल्हादिनी ने शैलजा की नजरों से बचते हुए वहां पर रखी हुई एक फाइल छिपा दी। 

"वैसे आप इसे यहां पर क्यों लाई?" आल्हादिनी ने फाइल को छिपाते हुए पूछा।

उसकी बात सुनकर शैलजा उसे घूरते हुए बोली। "मतलब क्या है तुम्हारा? मै इसे फोरेंसिक लैब में लाई हूं चिड़िया घर में नही। लाश को अपने घर थोड़े ही लेकर जाती।" 

"वो मेरा मतलब था कि कुछ तो बात होगी इस लाश में, जो आप इस वक्त इसे यहां ले लाई।" आल्हादिनी ने बात को बदलते हुए पूछा और फिर आगे बोली। "क्या आपने इस लाश के बारे में अभय को बताया है?"

"नही!" शैलजा ने संक्षिप्त सा जवाब दिया। और फिर आगे बोली। "तुम खुद इस लड़की की हालत देख लो। क्या लगता है तुम्हें? इसके साथ कितना गलत हुआ होगा?" कहकर शैलजा चुप हो गई। कुछ देर चुप रहने के बाद शैलजा ने पूछा। "वैसे तुम्हें मेरे आने के बारे में कैसे पता चल जाता है? मैंने यह बात कई बार नोटिस की है।"

शैलजा का प्रश्न सुनकर आल्हादिनी के चेहरे के भाव बदलने लगे। वह खुद पर काबू पाते हुए बोली। "पैरों की आवाज से। मै जिन लोगों को जानती हूं उन्हें उनके पैरों की आवाज से ही पहचान जाती हूं।"

जवाब देकर आल्हादिनी लड़की की लाश के पास पहुंची गई और उसे गौर से देखते हुए बोली। "देखने से तो ऐसा लग रहा है मानो इसे कई दिनों से रस्सी से बांधा गया था।" कहते हुए उसने मेज पर रखे हुए अपने ग्लब्स उठाएं और उन्हें पहनने लगी। ग्लब्स पहनने के बाद वह पास में रखा हुआ कैमिकल उठा आई। कैमिकल से वह लाश के हाथ पर बने हुए निशान को साफ करने लगी।

लाश के हाथों पर लाल लाल निशान उभर आए। जिन्हें देखकर साफ पता चल रहा था वह रस्सी के निशान थे। शैलजा को बुलाते हुए आल्हादिनी बोली। "दी! अब आप भी काम पर लग जाइए।"

आवाज सुनकर वह आल्हादिनी के पास आ गई। "लो! इसे पहन लो। कितनी लापरवाही करती हो तुम। ध्यान कहां रहता है आजकल तुम्हारा?" शैलजा ने मास्क आल्हादिनी को पकड़ाते हुए कहा।

"कही भी नही। लाशों पर ही रहता है। लाशों के अलावा मुझे कुछ दिखता ही कहां देता है?" आल्हादिनी ने अजीब सा मुंह बनाते हुए कहा। जिसे देखकर शैलजा हँसने लगी और फिर दोनों लाश को बड़े ध्यान से देखने लगी। जरा सा सुराख भी उन दोनों के लिए बहुत मायने रखता था।

"आल्हादिनी! तुम इसका ब्लड सैंपल ले कर चैक करो बाकि मै देखती हूं।" शैलजा के कहते ही आल्हादिनी ने लाश के हाथ से ब्लड निकाला और उसे माइक्रोशोप की स्लाइड पर रख कर बड़े ध्यान से देखने लगी।

"ये क्या है?" उसने खुद से बड़बड़ाते हुए कहा और पास में रखे हुए कैमिकल ब्लड में मिलाने लगी। कैमिकल मिलाते ही खून का रंग बदलने लगा। "ओह शीट!" उसने खून का बदलता हुआ रंग देखकर कहा और फिर कंप्यूटर स्क्रीन पर कुछ देखने लगी।

शैलजा ने पास में रखा हुआ मैग्नीफाइंग ग्लास उठाया और लाश पर बने हुए निशानों को बड़े गौर से देखने लगी। काफी देर तक वह लाश को देखती रही। उसे लाश के हाथों और पैरों पर रस्सी के निशान साफ साफ दिखाई दे रहे थे। लड़की को कई दिनों से बांधा हुआ था। बड़ा सुराख मिलने की उम्मीद से वह लाश के पूरे शरीर को ध्यान से देख रही थी। खास तौर से गर्दन, हाथ और पैरों को।

तभी शैलजा की नजर लड़की के दाएं हाथ की कलाई पर पड़ी। जिस पर एक छोटा सा चिन्ह बना हुआ था। गोले को भेदते हुए एक स्टार बना हुआ था। वह आधा बाहर और आधा भीतर था। वह उस निशान को गौर से देखने लगी। वह निशाना शैलजा ने पहले भी कही देखा था।

वह दिमाग पर जोर देकर सोचने लगी। "ओएमजी!" शैलजा ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा और फिर आगे बोली। "इसके बारे में तो मुझे अभय ने बताया था। ये चिन्ह तो लडकियों की तस्करी करने वाले ग्रुप का है। जिसका नाम ‘ओरेंगों’ है। उन लोगों ने इस लड़की को भी बंधी बनाया हुआ था। पर ये वहां बच कर कैसे निकली? उसकी कैद से निकल पाना तो बिल्कुल नामुमकिन है।" शैलजा आगे कुछ सोच पाती उस से पहले ही आल्हादिनी की आवाज उसके कानों में पड़ी। 

"दी! इस लड़की को रोज बेहोशी की दवाई दी जाती थी और खाना भी इतनी मात्रा में ही दिया जाता था ताकि यह जीवित रह सके।" जांच के बाद आए परिणाम को देखते हुए आल्हादिनी ने बताया।

उसकी बात सुनकर शैलजा के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई। कुछ सोचते हुए उसने अपना फोन निकाला और फिर कॉल करने लगी। कुछ देर बेल बजती रही। कॉल रिसीव होते ही वह बोली। "जल्दी लैब में आ जाओ। तुम्हें कुछ जरूरी बात बतानी है।" कहकर शैलजा ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी।

आल्हादिनी और शैलजा दोनों बैठकर आने वाले का इन्तजार करने लगी। वें दोनों अपनी अपनी सोच में खोई हुई थी कि तभी उन्हें गेट खुलने की आवाज सुनाई दी। गेट खुलते ही दोनों ने अपने सामने अभय को खड़ा पाया।

अभय के आते ही शैलजा सीधे उसके पास गई और उसे लाश के पास ले गई। लाश का चेहरा देखकर अभय के चेहरे के हाव भाव बदलने लगे। जिसे शैलजा ने देख लिया था।

"क्या हुआ अभय? लाश को देखकर तुम्हारे चेहरे के रंग क्यों उड़ गए?" शैलजा ने किसी अनहोनी की आशंका से पूछा।

"मैने इस लड़की को पहले भी कही देखा है।" अभय ने दिमाग पर जोर देते हुए कहा और फिर आगे बोला। "पर याद नही, कहां पर?"

"याद करो।" शैलजा ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा।

"आ गया याद।" अभय ने सोचते हुए कहा। उसकी आंखो में चमक साफ दिखाई दे रही थी। पर साथ ही साथ उसके चेहरे पर उदासी ने भी घर कर लिया। उसने अपनी पॉकेट में से फोन निकाला और कॉन्टेक्ट लिस्ट में किसी का नम्बर सर्च करने लगा।

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जारी रहेगी...मुझे मालूम है आप सभी समीक्षा कर सकते है, बस एक बार कोशिश तो कीजिए 🤗❤️

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2 Comments

hema mohril

25-Sep-2023 03:28 PM

Very nice part

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Barsha🖤👑

01-Feb-2022 09:13 PM

Nice part

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